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Showing posts from June, 2017

॥श्री हनुमान वंदना ॥

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॥श्री हनुमान वंदना ॥ चरण शरण में आय के, धरूं तिहारा ध्यान । संकट से रक्षा करो, पवनपुत्र हनुमान || .. दुर्गम काज बनाय के, कीन्हें भक्त निहाल । अब मोरी विनती सुनो, हे अंजनि के लाल ||.. हाथ जोड़ विनती करूं, सुनो वीर हनुमान । कष्टों से रक्षा करो, राम भक्ति देहुँ दान । पवनपुत्र हनुमान || मारुति नंदन नमो नमः कष्ट भंजन नमो नमः श्रीरामदूतम नमो नमः श्री संकट मोचन नमो नमः श्री केसरीनंदन नमो नमः श्री असुर निकंदन नमो नमः....

॥श्री हनुमान स्तवन ॥

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॥श्री हनुमान स्तवन ॥ प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानघन । जासु ह्रदय आगार बसहिं राम सर चाप धर ॥१॥ अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं । दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ॥२॥ सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं । रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ॥३॥ गोष्पदीकृतवारीशं मशकीकृतराक्षसम् । रामायणमहामालारत्नं वन्देऽनिलात्मजम् ॥४॥ अञ्जनानन्दनं वीरं जानकीशोकनाशनम् । कपीशमक्षहन्तारं वन्दे लङ्काभयङ्करम् ॥५॥ महाव्याकरणाम्भोधिमन्थमानसमन्दरम् । कवयन्तं रामकीर्त्या हनुमन्तमुपास्महे ॥६॥ उल्लङ्घ्य सिन्धोः सलिलं सलीलं यः शोकवह्निं जनकात्मजायाः । आदाय तेनैव ददाह लङ्कां नमामि तं प्राञ्जलिराञ्जनेयम् ॥७॥ मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् । वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥८॥ आञ्जनेयमतिपाटलाननं काञ्चनाद्रिकमनीयविग्रहम् । पारिजाततरुमूलवासिनं भावयामि पवमाननन्दनम् ॥९॥ यत्र-यत्र रघुनाथकीर्तनं तत्र-तत्र कृतमस्तकाञ्जलिम् । बाष्पवारिपरिपूर्णलोचनं मारुतिं नमत राक्षसान्तकम् ॥१०॥ बोलो बजरंगबली की जय ...

॥ संकट मोचन हनुमानाष्टक ॥

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॥ संकट मोचन हनुमानाष्टक ॥ बाल समय रवि भक्ष लियो, तब तिनहुं लोक भयो अंधियारो। ताहि सो त्रास भयो जग को, यह संकट काहू सो जाता न टारो ।। देवन आनी करी विनती तब, छांड़ि दियो रवि कष्ट निवारो। को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो।।1।। बालि की त्रास कपीस बसै गिरी, जात महा प्रभु पंथ निहारो। चौंकि महा मुनि शाप दियो, तब चाहिए कौन विचार विचारौ।। ले द्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के शोक निवारो। को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो।।2।। अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो। जीवत न बचिहौं हम सो जुं, बिना सुधि लाए इहां पगु धारो।। हेरी थके तट सिन्धु सबै तब, लाय सिया सुधि प्रान उबारो। को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो।।3।। रावन त्रास दई सिय को तब, राक्षसि सो कही शोक निवारो। ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाय महा रजनीचर मारो।। चाहत सिय अशोक सो आगि सु, दे प्रभु मुद्रिका सोक निवारो। को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो।।4।। बाण लग्यो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सुत रावन मारो। ...

आरती श्री रामायण जी की

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ॐ आरती श्री रामायण जी की आरती श्री रामायण जी की। कीरत कलित ललित सिय पिय की। गावत ब्रह्मादिक मुनि नारद। बाल्मीक बिग्यान बिसारद। गावत वेद पुरान अष्टदस। छाओ शास्त्र सब ग्रन्थ्न को रस। मुनि जन धन संतन को सरबस। सार अंस समंत सबही की। गावत संतत संभु भवानी। अरु घटसंभव मुनि विग्यानि। व्यास आदि कबिबर्ज बखानी। कागभुसुंडि गरुड़ के ही की। कलिमल हरनि विषय रस फीकी। सुभग सिंगार मुक्ती जुबती की| दलन रोग भव भूरी अमी की। तात मात सब विधि तुलसी की। For complete meaning about Aarti please contact: vipin9582674712@gmail.com New Delhi,India

श्री प्रेतराज सरकार जी की आरती

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ॐ श्री प्रेतराज सरकार जी की आरती जय प्रेतराज कृपालु मेरी, अरज अब सुन लीजिये। मैं शरण तुम्हारी आ गया, हे नाथ दर्शन दीजिये। मैं करूं विनती आपसे अब, तुम दयामय चित्त धरो। चरणों का ले लिया आसरा, प्रभु वेग से मेरा दुःख हरो। सिर पर मोरमुकुट कर में धनुष, गलबीच मोतियन माल है। जो करे दर्शन प्रेम से सब, कटत तन के जाल है। जब पहन बख्तर ले खड़ग, बांई बगल में ढाल है। ऐसा भयंकर रूप जिनका, देख डरपत काल है। अति प्रबल सेना विकट योद्धा, संग में विकराल है। सब भूत प्रेत पिशाच बांधे, कैद करते हाल है। तब रूप धरते वीर का, करते तैयारी चलन की। संग में लड़ाके ज्वान जिनकी, थाह नहीं है बलन की। तुम सब तरह सामर्थ हो, प्रभु सकल सुख के धाम हो। दुष्टों के मारनहार हो, भक्तों के पूरण काम हो। मैं हूँ मती का मन्द, मेरी बुद्धि को निर्मल करो। अज्ञान का अंधेर उर में, ज्ञान का दीपक धरो। सब मनोरथ सिद्ध करते, जो कोई सेवा करे। तन्दुल बूरा घृत मेवा, भेंट ले आगे धरे। सुयश सुन कर आपका, दुखिया तो आये दूर के। सब स्त्री अरु पुरुष आकर, पड़े हैं चरण हजूर के। लीला है अदभुत ...

श्री भैरव जी की आरती

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ॐ श्री भैरव जी की आरती सुनो जी भैरव लाड़िले, कर जोड़ कर विनती करूँ। कृपा तुम्हारी चाहिए, मैं ध्यान तुम्हार ही धरूँ। मैं चरण छूता आपके, अर्जी मेरी सुन लीजिए। मैं हूँ मती का मन्द, मेरी कुछ मदद तो कीजिए। महिमा तुम्हारी बहुत कुछ, थोड़ी सी मैं वर्णन करूँ। सुनो... करते सवारी स्वान की, चारों दिशा में राज्य है। जितने भूत और प्रेत, सबके आप ही सरताज हैं। हथियार हैं जो आपके, उनका मैं क्या वर्णन करूँ। सुनो... माता जी के सामने तुम नृत्य भी करते सदा। गा गा के गुण अनुराग से, उनको रिझाते हो सदा। एक सांकली है आपकी, तारीफ़ उसकी क्या करूँ। सुनो... बहुत सी महिमा तुम्हारी, मेहंदीपुर सरनाम है। आते जगत के यात्री, बजरंग का स्थान है। श्री प्रेतराज सरकार के, मैं शीश चरणों में धरूँ। सुनो... निशनिद तुम्हारे खेल से, माताजी खुश होती रहें। सिर पर तुम्हारे हाथ रख कर, आशीष देती रहें। कर जोड़ कर विनती करूँ, अरु शीश चरणों में धरूँ। सुनो... For complete meaning about Aarti please contact: vipin9582674712@gmail.com New Delhi,India

श्री बाला जी की आरती

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ॐ श्री बाला जी की आरती ॐ जय हनुमत वीरा स्वामी जय हनुमत वीरा संकट मोचन स्वामी तुम हो रणधीरा।। ॐ पवन - पुत्र अंजनी - सुत महिमा अति भारी। दुःख दरिद्र मिटाओ संकट सब हारी।। ॐ बाल समय में तुमने रवि को भक्ष लियो। देवन स्तुति किन्ही तबही छोड़ दियो।। ॐ कपि सुग्रीव राम संग मैत्री करवाई। बाली बली मराय कपीशाहि गद्दी दिलवाई।। ॐ जारि लंक को ले सिय की सुधि वानर हर्षाये। कारज कठिन सुधारे रधुवर मन भाये।। ॐ शक्ति लगी लक्ष्मण के भारी सोच भयो। लाय संजीवन बूटी दुःख सब दूर कियो।। ॐ ले पाताल अहिरावण जबहि पैठि गयो। ताहि मारि प्रभु लाये जय जयकार भयो।। ॐ घाटे मेंहदीपुर में शोभित दर्शन अति भारी। मंगल और शनिश्चर मेला है जारी।। ॐ श्री बालाजी की आरती जो कोई नर गावे। कहत इन्द्र हर्षित मन वांछित फल पावे।।ॐ For complete meaning about Aarti please contact: vipin9582674712@gmail.com New Delhi,India

श्री राम स्तुति

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ॐ श्री राम स्तुति श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं। नवकंज लोचन, कंजमुख, कर कंज, पद कंजारुणं।। कंन्दर्प अगणित अमित छबि नवनील - नीरद सुन्दरं। पटपीत मानहु तड़ित रूचि शुचि नौमि जनक सुतावरं।। भजु दीनबंधु दिनेश दानव - दैत्यवंश - निकन्दंन। रघुनन्द आनंदकंद कौशलचन्द दशरथ - नन्दनं।। सिरा मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभूषणं। आजानुभुज शर - चाप - धर संग्राम - जित - खरदूषण़म्।। इति वदति तुलसीदास शंकर - शेष - मुनि - मन रंजनं। मम ह्रदय - कंच निवास कुरु कामादि खलदल - गंजनं।। मनु जाहिं राचेउ मिलहि सो बरु सहज सुन्दर साँवरो। करुणा निधान सुजान शीलु सनेहु जानत रावरो।। एही भाँति गौरि असीस सुनि सिया सहित हियँ हरषिं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनिपुनि मुदित मन मन्दिरचली।। ।। दोहा ।। जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे ।। For complete meaning about Aarti please contact: vipin9582674712@gmail.com New Delhi,India

Sunder Kand

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ॐ सुन्दर काण्ड श्रीजानकीवल्लभो विजयते श्रीरामचरितमानस शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं ...